Nai Kavita ki Visheshtaen | नई कविता की विशेषताएं

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नई कविता की विशेषताएं | nai Kavita ki visheshtaen

सन् 1950 ई. के बाद नई कविता का नया रूप शुरू हुआ। प्रयोगवादी कविता ही विकसित होकर नई कविता कहलायी। यह कविता किसी भी प्रकार के वाद के बन्धन मे न बँधकर वाद मुक्त होकर रची गयी। nai Kavita ki visheshtaen की विषय वस्तु मात्र चमत्कार न होकर एक भोगा हुआ यथार्थ जीवन है। नई कविता परिस्थितियों की उपज है। आज हम नई कविता किसे कहते हैं? नई कविता क्या हैं? और नई कविता की विशेषताएं जानेगें।

नई कविता किसे कहते हैं? नई कविता क्या हैं?( Nai Kavita Kise  Kahate Hai )

नई कविता स्वतंत्रता के बाद लिखी गई वह कविता है जिसमे नवीन भावबोध, नए मूल्य तथा नया शिल्प विधान है। नई कविता मे मानव का वह रूप जो दार्शनिक है, वादों से परे है, जो एकांत मे प्रगट होता है, जो प्रत्येक स्थिति मे जीता है, प्रतिष्ठित हुआ है। उसने लघु मानव को, उसके संघर्ष को बार-बार वण् र्य बनाया है। nai Kavita ki visheshtaen मे दोनों परिवेशों को लेकर लिखने वाले कवि है। एक ओर ग्रामीण परिवेश, दूसरी ओर शहरी जिसमे कुंठा, घुटन, असमानता, कुरूपता आदि का वर्णन हुआ है।

नई कविता को वस्तु की उपेक्षा शिल्प की नवीनता ने अधिक गंभीर चुनौती दी है। नए शिल्प अपनाना और परम्परागत शिल्प को तोड़ना दुष्कर कार्य था। अतएव कुछ कवितायों को छोड़कर छोटी-मोटी कविताओं की प्रचुरता रही। और प्रभावशीलता की दृष्टि से ये छोटी-छोटी रचनाएँ भी बड़े-बड़े वृत्तान्तों से कही अधिक सफल बन पड़ी हैं।

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नई कविता की विशेषताएं-

1. लघुमानववाद की प्रतिष्ठा – इस काल की कविताओं में मानव से जुड़ी प्रत्येक वस्तु को प्रतिष्ठा प्रदान की गई है तथा इसे कविता का विषय बनाया है।

2. प्रयोगों में नवीनता – नए-नए भावो को नए-नए शिल्प विधानों में प्रस्तुत किया गया है।

3. क्षणवाद को महत्व – जीवन के प्रत्येक क्षण को महत्वपूर्ण मानकर जीवन एक-एक अनुभूति को कविता में स्थान प्रदान किया है।

4. अनुभूतियों का वास्तविक चित्रण – मानव का समाज दोनों की अनुभूतियों का सच्चाई के साथ चित्रण किया है।

5. बिंब – इस युग के कवियों ने नूतन बिंबो की खोज की।

6. व्यंग प्रधान रचनाएं – इस काल में मानव जीवन की विसंगतियों, विकृतियों एवं अनैतिकतावादी मान्यताओं पर व्यंग्य रचनाएं लिखी हैं।

7. आस्था और विश्वास के स्वरआस्था नई कविता की आधार भूमि है। द्वितीय सप्तक के कवियों में आस्था और विश्वास के स्वर तीव्रता से झंकृत हुये है।
8. कुंठा, संत्रास, मृत्युबोध- मानव मन मे व्याप्त कुंठाओं का, जीवन के संत्रास एवं मृत्युबोध का मनोवैज्ञानिक ढंग से चित्रण इस काल की कविताओं का पहचान है।
9. संवेदनशीलता- नई कविता जीवन के भोगे हुये प्रत्येक गहरे क्षण को आन्तरिक भावों के साथ ग्रहण करती है। क्षणों की अनुभूतियों को प्रस्तुत करने वाली कवितायें लघु होने पर भी प्रभावकारी व्यंजना करने में सक्षम है। नये कवि की अनुभूति की सच्चाई और गहराई में कितनी शक्ति निहित हैं,
10. बिम्ब- प्रयोगवादी कवियों ने नूतन बिम्बों की खोज की हैं।आत्मा मुक्ति नई कविता के कवि का दर्शन आत्म मुक्ति का है। नई कविता अपने को छोटे-बड़े, देशी-विदेशी साहित्य एवं सामूहिक गुटबन्दी से बचाती हुई स्वयं के मुक्ति-दर्शन में निमग्न है। डाॅ. नगेन्द्र के अनुसार,” साहित्य अपने शुद्ध रूप में अहम् का विसर्जन हैं।’
11. व्यंग्य प्रधान रचनाएँ- इस काल मे मानव जीवन की विसंगतियों, विकृतियों एवं अनैतिकतावादी मान्यताओं पर व्यंग्य रचनाएँ लिखी गई हैं।
12. लघु मानव की प्रतिष्ठा- लघु मानव नई कविता की एक शोध है। लघु मानव की शोचनीय अभिव्यक्ति पर व्यग्र होकर लक्ष्मीकान्त वर्मा ने ‘लघु मानव’ की लघुता को व्यापक महत्ता के सन्दर्भों से जोड़ा है। वे ‘लघुमानव’ के लघु परिवेश और लघु-सीमा को पुंसत्वहीन और निष्क्रिय मानते हैं।
13. प्रकृति चित्रण- नई-कविता में रंग, स्पर्श, ध्वनि आदि पर आधारित बिम्बों के द्वारा प्रकृति के विशिष्ट दृश्यों को बड़ी सूक्ष्मता के साथ उभारा गया है। डाॅ. धर्मवीर भारती ने ‘नवम्बर की दोपहर’ कविता में नवम्बर की धूप के सुखद स्पर्श को जार्जेट के पल्ले की उपमा द्वारा उपमित करते हुये लिखा हैं
14. जीवन चित्रण- नया कवि व्यक्तिवादी है। वह अपने चारों ओर के समाज पर या तो दृष्टिपात करता नहीं है और यदि करता भी है तो उसकी दृष्टि समाज की कुत्सा, विषाद और भोंडे-पन पर ही जाती है।
15. नवीनता के प्रति आग्रह- नई कविता नवीनता की प्रवृत्ति को लेकर अग्रसर हुई हैं। नये कवि के लिये परम्परायें सदा त्याज्य रही है। नये युग के परिवेश के साथ कदम मिला कर जो मूल्य नहीं चल पाते हैं, उनके प्रति आक्रोश भी नये साहित्य में अभिव्यक्त होता है। पुरानी नैतिकता को ढोते-ढोते कवि कितना टूट चुका है,
इस प्रकार उपर्युक्त विस्तृत विवेचन से स्पष्ट है कि नई कविता साहित्य-जगत में व्यापक प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुकी है। चाहे विषय परिधि हो या उपमानों की परिकल्पना, चाहे बिम्ब-योजना हो या प्रतीक-विधान, चाहे वस्तुगत सौष्ठव हो या शिल्पगत सृजन-सभी क्षेत्रों में नई कविता ने अपना स्तुत्य स्थान प्राप्त कर लिया हैं।

नई कविता की कुछ अन्य विशेषताएं-

1. अति यथार्थता।
2. पलायन की प्रवृत्ति।
3. वैयक्तिकता।
4. निराशावाद।
5. बौद्धिकता।

  कवि

        रचनाएं

मेहता

बोलने दो चिड़ को, वनपाखी सुनो

दुष्यंत कुमार

सूर्य का स्वागत,साए में धूप

भवानी मिश्र

सन्नाटा , गीत फरोश

कुंवर नारायण

चक्रव्यूह, आमने सामने

जगदीश गुप्त

नाव के पांव, बोधि वृक्ष

नई कविता के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ-

1. भवानी प्रसाद मिश्र रचनाएँ; सन्नाटा, गीत फरोश, चकित है दुःख।
2. कुंवर नारायण रचनाएँ; चक्रव्यूह, आमने-सामने, कोई दूसरा नही।
3. शमशेर बहादुर सिंह रचनाएँ; काल तुझ से होड़ है मेरी, इतने पास अपने, बात बोलेगी हम नहीं।
4. जगदीश गुप्त रचनाएँ; नाव के पाँव, शब्द दंश, बोधि वृक्ष, शम्बूक।
5. दुष्यंत कुमार रचनाएँ; सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, साये में धूप।
6. श्रीकांत वर्मा रचनाएँ; दिनारम्भ, भटका मेघ, माया दर्पण, मखध।
7. रघुवीर सहाय रचनाएँ; हँसो-हँसो जल्दी हँसो, आत्म हत्या के विरुद्ध।
8. नरेश मेहता रचनाएँ; वनपांखी सुनों, बोलने दो चीड़ को, उत्सव।

1.नई कविता के प्रमुख कवि nai Kavita ke Pramukh Kavi – नई कविता के प्रमुख कवियों में प्रमुख हैं – डॉक्टर जगदीश गुप्त, लक्ष्मीकांत वर्मा, विजयदेव नारायण साही, श्रीकांत वर्मा, धर्मवीर भारती, कुंवर नारायण, शमशेर बहादुर सिंह, रामस्वरूप चतुर्वेदी, सर्वेश्व दयाल सक्सेना.

2. सौंदर्य भावना और कला पक्ष – आधुनिक कवि सौंदर्य की परिधि में प्रत्येक वस्तु को समेट लेता है, इसलिए उसमें सुंदर-सुंदर सभी का घोलमेल हो गया है। आज का कवि भाषा, प्रदेशिक भाषाओं-हिंदी अंग्रेजी एवं उर्दू सभी के शब्दों का घोलमेल कर देता है।

उनका अपना विचार है कि यही भाषा के यथार्थ को प्रकट करने में सक्षम है। छंदों का तिरस्कार करके छंदहीनता की ओर झुक जाता है। और कला हीनता को कला मान बैठा है।

3. वैयक्तिकता और बौद्धिकता –आज का कभी अपने अहं में ही सिमटा रहे गया है। और अपने सुख-दुख आशा निराशा की अभिव्यक्ति को ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानता है कविता में वह यही व्यक्त करता है की आत्मा व्यक्ति से उसे कोई संकोच था वह नहीं लगता आज का कवि भावुकता के स्थान पर जीवन को बौद्धिक दृष्टिकोण से देखता है और इसलिए उसे काल्पनिक आदर्शवाद के स्थान पर कटु यथार्थ ही अधिक आकृष्ट करता है। इस यथार्थ में ही उस में वर्तमान व्यवस्था के प्रति विक्षोभ कर दिया है।

4.कुंठा, सत्रांश ,मृत्युबोध- निराशा और आशा ही इन भावों को भी जन्म देती है व्यक्ति जीवन से उठता है। यह ऊब निराशा का ही चरम रूप है।

5.अनास्था – नहीं कभी को उपयुक्त कारणों से हर व्यक्ति वस्तु के प्रति अनास्ता उत्पन्न हो गई है ।बौद्ध धर्म या ईश्वर में किसी का विश्वास नहीं करता है।

6. वेदना – आर्थिक एवं सामाजिक विषय ने वेदना से भर दिया है ।उसे जीवन में हर और गतिरोध भी पड़ता है। मुक्तिबोध के शब्दों में..

7. नैराश्य भावना- आज मानवीय मूल्यों के अवमूल्यन एवं व्यक्तित्व के विघटन के कारण सावत्र निराशा प्राप्त है। जीवन की विसंगतियों से टकराकर आदमी भीतर ही भीतर टूटता जा रहा है ।इसी कारण नया कभी निराशा से भर उठा है।

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